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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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लोक - रिवाज

लोक - रिवाज

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लीक -लीक पहिया चलै, लीक ही चलैं कपूत

लीक छांड़ि तीनहु चलैं, शायर - सिंह- सपूत।


अपने पुरखों से मिला, हमें बड़ा अनमोल ही ज्ञान

सुगम बनाता राह सफर की,जीवन को करता आसान।

पिछली पीढ़ी अगली को, दे जाती है अनुपम वरदान

निभती रहतीं परंपराएं, इनका होता रहता है सम्मान।

शुभता-शुचिता के बल निभतीं, मानते रहते पूत के पूत।

लीक-लीक पहिया चलै।


धूर्त लोग कुत्सित विचार, निज स्वार्थ का भाव मिलाते हैं

भोले लोग भरोसा करके, बेझिझक इन्हें अपनाते हैं।

हुईं धूर्तता की जो मिलावट, उसे समझ नहीं पाते हैं

बिन सोचे परंपरा रूप में, वे अगली पीढ़ी को दे जाते हैं।

जाने बिना तर्क कुछ इसका, जाते निभाते पूत के पूत

लीक-लीक पहिया चलै।


बदलाव है शाश्वत सत्य जगत का, रखना हमें सदा है ध्यान

प्रवृत्ति सदा जिज्ञासु वाली, कर श्रम जानें हम पूरा ही ज्ञान।

जानने में आलस ना कभी करें, तथ्य-तर्क लें विधिवत जान

नव पंथ बनाएं परमार्थ में, निंदा-स्तुति पर न दें कभी ध्यान।

निर्णय जो राही है शुभ तेरा, कल मानेंगे निंदक तुझे सपूत

लीक -लीक पहिया चलै।


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