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Kavita Agarwal

Abstract

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Kavita Agarwal

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लोचन

लोचन

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बड़े बेशर्म से हो गए हैं हम

शिकायत करते हैं हम

आराम नहीं है

रात भर जगते हैं


आंखों में जलन होने लगी है

रोशनी मोबाइल की चुभने लगी है

कल संडे है आज जल्दी सोने का दिन है

और कल देर से जगने का दिन है


शिकायत है सोना है आराम से

पर थकने के बाद भी नींद नहीं आ रही है सोने से

लगता है मोहब्बत हो गई है

अरे ठहरो ! कंक्लुजन में नहीं आना है,


फिर क्या हो गया ?

कहना है, मच्छरों से प्यार हो गया

ना मारना चाहते हैं उन्हें

ना दूर भेज पा रहे है उन्हें


मीठे हैं हम, इसलिए पीना चाहते हैं खून

चलो हम क्या करे खिड़की खोल देख लेते हैं मून

रात थम सी गई है

आंखों में नींद चढ़ने से लगी है


शायद ख्वाबों में कोई आए

पलकें झुका लेते हैं वह चले न जाए।


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