परिंदा
परिंदा
आओ सुनाऊ एक परिंदे की कहानी।
बाग में देखा मैंने मैंना हुई सयानी ।।
सज धज के अपने पंख फैलाए।
चोंच को अपने साफ किए चमकाए।।
मीठी-मीठी धुन गुनगुनाए।
उड़ चली वह सपने सजाए ।।
टिम टिम बरस रहा था पानी।
इंद्रधनुष ने बिखरे अपने रंगों की रानी ।।
बादलों को पार करें ।
आया तोता सजे संवरे ।।
देख तोता मैना शरमाई।
ओढ़ चुनर प्यार की पीहू पीहू गुनगुनाई।।
बाघ मेरा विरान हुआ।
तोता मैना एक हुए।।
एक आंधी ऐसी आई ।
लहरों पर लहरें डूब गई ।।
घोंसला मेरा टूट गया।
ना जाने परिंदा कहां खो गया।।
हरे हरे अंडे छोड़।
ना जाने कैसा आया मोड़।।
फिर एक नई सुबह हुई ।
बाग मेरा खिल गया यूंही ।।
निराशा में आशा फिर दिखी।
उम्मीदों में होंसला फिर उठी।।
आओ सुनाऊं परिंदों की कहानी।
बाग में बोले फिर पीहू पीहू।।