"कुर्सी "
"कुर्सी "
दुनिया की भीड़ में,
नाम कमाने की होड़ में।
सच्चाई और गलत की राह में,
किसी एक का साथ चुनने में।
नेता ने ना लगाई देर,
कुर्सी अपनी देखकर गरजा उसके अंदर का शेर।
ठहाके ! भरकर प्रेस बुलाई,
बड़े बड़े वादों की हुई सुनवाई।
भर भर के केस पे केस था,
अत्याचारों के लीस्ट का सेज था।
जो करेंट टॉपिक पे मचा शोर था,
नेता ने उसी का यूज किया चाहे वह झूट था।
एक के बाद एक चर्चे हुए,
झूठ सच के खेल में कुछ खर्चे हुए।
भ्रष्टाचार के कई हुए शिकार,
चुप रह गए कई परिवार।
कहीं मजबूरी थी अपनों की,
तो कइयों ने कुर्बान किए अपने सपनों की।
कुछ पीछे हट गए,
कुछ लड़ते लड़ते सलट गए।
वोट का टाइम था,
नेता का जगमगाना तय था।
कुछ बीते पन्ने फिर जगाए गए,
वोट के लिए उन्हें फिर उकसाए गए।
परिवार का सब गया,
नेता का क्या गया।
इज्जत गई परिवार समाज की,
कोर्ट ने ना छोड़ा, ना कोई लिहाज़ की।
कण कण भिखर गए सवाल में,
लेज्जित हुआ ना देश,ऐसे कानून मे।
कुछ मारे गए बचाओ में,
कुछ लूट लिए गए सुंदर यौवन में।
कमी नहीं है देश की समस्याओं में,
हर बात की तोड है पॉलिटिक्स में।
किसी का लड़का शाहीद हुआ,
किसी का बेटा अनाथ हुआ ।
नेता की परिभाषा में,
तिरंगा चड़ाया गया शान में।
नेता लड्डू रखें हाथो में,
पैसे रखें खातों में।
ना दुख वो समझे,
ना जिल्लत वो समझे।
गांधीजी का नोट लिए हाथ में,
समझाऊं एक परिभाषा में।
नाम शोहरत की आन में,
अपनी ज़मीर को भी बेचते हैं रोड में।
दुनिया की भीड़ में,
नाम कमाने की होड़ में।
केस पे केस पेंडिग रहे,
आंखों में पट्टी लगाए कानून के अंदर में।