STORYMIRROR

Anv Varshney

Classics Fantasy Children

4  

Anv Varshney

Classics Fantasy Children

लम्हे याद के

लम्हे याद के

1 min
406


कल मैं खुद बच्ची थी,

आज मैं बड़ी हो गयी।

कल मैं एक नन्नी परी थीं,

आज मैं खुद लिखने लायक हो गयी।


सुबह उठती थी,रोज नहाती,

पूजा पाठ करके, स्कूल मैं, जाती थी।


कल मैं खुद.......

भाई बहनों से, मैं रोज लड़ती,

मस्ती मैं खूब करती थी,

एक दोस्त, बनकर उनसे बात मैं करती थी।


मम्मी के हाथ रोटी में खूब खाती थी,

पापा का प्यार खूब मैं बटोर लेती थी।


आस पड़ोस में जाती चार बात,

मैं पड़ोसियों की ले आती थी।


जरा सी बात पर मैं मुँह फुला लेती थी।

जिद्दी तो मैं बहुत थी पर हर बात को,

मैं मनबा लेती थी।

कल मैं खुद छोटी................


अम्मा बाबा की लोरियों को मैं सुनती थी,

अम्मा का चश्मा बाबा की छड़ी में तोड़ती थी।


चाचा ताऊ बुआ फूफा के साथ बैठकर,

मैं ज्ञान की बातें सुनती थी।


मुँह मैं खूब फुलाती

अपनी लड़ाई खुद लड़ आती,

पर मैं किसी से कुछ ना कह पाती।

कल मैं खुद छोटी थी।


दोस्तों के साथ कॉलेज में जाति थी,

चार कुर्सी मैं तोड़ देती थी।

डिब्बा मैं दोस्तों का मैं खा जाती,

पर खूब मस्ती मैं करती थी।


सपने तो हर रोज मैं संजोती,

हाथ में चौक स्टिक लेकर।

आँखों में चश्मा लगाकर,

खुद मैं टीचर बन जाती।

कल मैं खुद छोटी थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics