अंदाजे बयां (१०)
अंदाजे बयां (१०)
मेरे हिय पर खुल गया, उसके हिय का खोट
चंचल मन दे गई, मस्त मलंग को चोट।
साँच कसौटी कह गई, इसमें है खोट
समझ-बूझ सब बहरे हो गये, देखे जब ये नोट।
ये जग की रीत है, कौन उठाये इस पर प्रसंग
आसमान आँसू बहाये, इंद्रधनुषी से हैं रंग।
चतुर चालाक ही फँसे, बार-बार इस मायाजाल
उड़ जाये चिरैया नीड़ से, अंबर तक का ले हाल।
शत्रु बसे सुख-चैन में, उनसे संयोग मिलाय
‘परिमल’ अपने आपको, नागों के मध्य लाय।
किसी ने मुझसे ये कहा, धर सीस मेरे पाँव
ऐसा खोर डगर बता, जिसमें मिले न धूप-छाँव।