STORYMIRROR

VIVEK ROUSHAN

Tragedy

3  

VIVEK ROUSHAN

Tragedy

लकड़ी या कलम

लकड़ी या कलम

1 min
147


मैं बुधिया हूँ

इस देश की बेटी हूँ,

सात साल की उम्र में

दस किलो का माथे पर

वजन उठाती हूँ,

माँ-बाप भूखे न रह जाए

इसलिए अम्मा के साथ

मिलकर लकड़ी जुटाती हूँ,

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के

तहत हमें भी गैस कनेक्शन मिला है

इसके लिए मैं "नरेंद्र मोदी" जी

का धन्यवाद करती हूँ पर

हर महीने गैस सिलेंडर भरवा ले

इतने पैसे हमारे पास नहीं

भूख मिटाने के लिए हमारे पास

लकड़ी के सिवा कोई और आस नहीं

"विवेक" भईया शहर से गाँव आए हैं

पूछते हैं हमसे की

स्कूल क्यूँ नहीं जाती ?

पढ़ाई क्यूँ नहीं करती ?

तब मैं उन्हें जवाब देती हुँ,

की भईया -

जब कलम पकड़ती हूँ,

तो लकड़ी छूट जाती है और

लकड़ी पकड़ती हूँ तो

कलम छूट जाती है

मैं भी स्कूल जाना चाहती हूँ,

अपनी सहेलियों के संग

पढ़ना-लिखना

खेलना-कूदना चाहती हूँ,

मेरी सहेलियाँ मुझे स्कूल बुलाती हैं

पर अम्मा कहती है की

हमारी भूख तो लकड़ी मिटाती है

मैं पढाई के लिए अपने

अम्मा-बाउजी

से बहुत लड़ती हूँ,

कभी खुद से कभी

अम्मा-बाउजी से रूठ भी जाती हूँ

पर सब के जीवन की

कहानी एक सी नहीं होती

पढाई-लिखाई सब के

किस्मत में नहीं होती

मेरे जैसी इस देश में बहुत लड़कियाँ हैं

मैं भी एक बदनसीब अनसुलझी लड़की हूँ,

लकड़ी बड़ी है या कलम

मैं इस एक सवाल में

कई वर्षों से उलझी हूँ |


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy