लज्जित माताए
लज्जित माताए
हृदय में सुलगते अंगार,
धुएँ का धुंध और गुबार
भ्रम, असमंजस का संसार!!
दूषित हो गया ब्रह्माण्ड
वायु, जल दूषित, प्रदूषित,
प्राणी का व्यवहार!!
गौ माँ कहलाती, हर
हृदय में रखती ऊँचा
स्थान माता-स्वरूप में
पूजी जाती,!
भरने को पेट दर-दर
भटकतीअपमानित होती,
स्वार्थी मानव, प्रदूषित
आचरण, व्यवहार!!
स्वार्थी मानव, दूध का
भूखा,छोड़ देता गौ माता
को दूषित स्वार्थ का
कलयुग, मानव समाज,
संसार!!
गौ माँ तो पशुवत
परिभाषित, माता-पिता
जन्मदाता भाग्य, भगवान
देता त्याग,जैसे दूध की
मक्खी समान!!
माता-पिता, भाई,बहन,
परिवार, समाज का
एक-एक का करता
जाता त्याग!!
कलयुग का कलिकाल,
समाज निहित स्वार्थ में
कृत्य, पाप में अंधा,!
सौदा मातृभूमि, माँ
भारती का करता
जन्म, जीवन, मर्यादा
करता खंड-खंड,
तार-तार!!
लज्जित करता, तर्क,
तथ्य अनेकों प्रस्तुत
करता निर्लज्ज मानव
वर्तमान!!
माँ को ही नंगा, ढोंग,
स्वांग, को वर्तमान
विकास पीढ़ी परिवर्तन की
व्याख्या देता,!
पाखंड, छल, छद्म,
प्रपंच,मर्म का कहता
विज्ञान, करता दूषित,
दूषण प्राणी, प्राण,!
प्रदूषण, हृदय में सुलगता
अंगार धुएँ का धुंध, गुबार,
भय, असमंजस का संसार!!
करता प्रश्न, क्या है
इच्छा,?कैसा चाहते
वर्तमान?रचना करना
चाहते कैसा इतिहास?!!
उत्तर मिलता नहीं,
सोच, विचार, ज्ञान,
विज्ञान का बोध नहीं
सिर्फ स्वार्थ वशिभूत
वर्तमान!!
भोग-विलास, स्वार्थ में
भागम-भाग, जुतम-पैजार
धर्म वहीं जो मन को भावे,
मर्म वहीं जो महिमा गाए!!
आचरण वहीं जो मन,
काया भाए, सुख, संतुष्टि
लाए उद्देश्य मात्र अर्थ,
अस्ति, अस्तित्व, जहाँ
जैसे आए!!
मानव क्रूर, भय, भयंकर,
काल, कलयुग, परतंत्र
मोक्ष दायनी गंगा माँ भी
शापित, अभिशपित
करता!!
स्वयं के उत्कोच से,
प्रदूषित करता गौ माँ का
रुदन, क्या कम था, मोक्ष
दायनी माँ का आंचल,
दामन ही मैला करता,!!
कलयुग में मातायें दुःखी
बहुत गौ माता हो या गंगा
माईया, या हो जननी
चाहे हो जननी, जन्मभूमि,
मातायें आहत, मर्माहत
स्वयं संतानों से, है
लज्जित!!
- नंदलाल मणि त्रिपाठी, पीतांबर, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश!!
