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Goldi Mishra

Tragedy

4  

Goldi Mishra

Tragedy

लहरों का शोर

लहरों का शोर

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सुन रही हूं इन लहरों का शोर,

आहिस्ता आहिस्ता खामोश हो रहा ये शोर,।।


उस फसाने ने मुझे तोड़ने की कोशिश की,

एक बौछार हुई इस जिस्म पर निशानों की,

समाज की खातिर मैं समाज में चुप रही,

एक धुएं और घुटन से भरी जिंदगी मै जीती रही,।।

सुन रही हूं इन लहरों का शोर,

आहिस्ता आहिस्ता खामोश हो रहा ये शोर,।।


एक रोज़ मिला वो ज़ख्म अब निशान बन गया है,

वो किस्सा दिल के एक कोने में छुप गया है,

आज भी भीड़ में खुद को गुम महसूस करती हूं,

इन पन्नो की सरसराहट में अपनी ही एक कहानी ढूंढती हूं,।।

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सुन रही हूं इन लहरों का शोर,

आहिस्ता आहिस्ता खामोश हो रहा ये शोर,।।


एक बिखरी स्याह सी जिंदगी आज कल लगती है,

ये शाम एक कोरे कागज़ पर चुप दास्तान सी लगती है,

मुझसे मै बेहद दूर हूं,

कभी गुनगुनाया हो किसी ने मै वो अफसाना हूं,।।

सुन रही हूं इन लहरों का शोर,

आहिस्ता आहिस्ता खामोश हो रहा ये शोर,।।


कैसा ये रिश्ता जिसमें दर्द और ज़ख्म मिले,

सब सह कर भी हाथ में सिर्फ खालीपन लगे,

अपने किस्से को मै शब्द देना चाहती हूं,

दो पल सुकून के अपनी हथेली पर रखना चाहती हूं,।।


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