लहज़े को नर्म करो !
लहज़े को नर्म करो !


इश्क़ को यूँ आत्मसात करो
ख़त्म तुम अपनी जात करो,
इश्क़ से जब मिलने जाओ
पहले ख़ुद को तुम तैयार करो,
दिन भर खुद के साथ रहो
इश्क़ में बसर अब रात करो,
रात की ज़ुल्फ़ सँवर जाए
गर हिज्र को तुम वस्ल करो,
इश्क़ को तुम दिल में बसाओ
फिर उसकी धड़कनों पर कब्ज़ा करो,
मुझ पर कुछ ऐसे प्यार लुटाओ
बंजर ज़मीन पर जैसे बरसात करो,
बात हो जब भी इश्क़ के बारे में
अपने लहज़े को तुम थोड़ा नर्म करो,
उम्र की पूँजी यूँ ही ख़त्म ना हो
कुछ कम खर्च तुम इसे उस पर करो,
नयनों का अमृत चखने के लिए
तर्क सभी तुम आज़माया करो !