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Nalanda Satish

Romance

3  

Nalanda Satish

Romance

लगन

लगन

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201

 जब से तुझसे लगन हैं लागी

मेरी कायनात में बहार है आयी

मेरी शरीके-ए-हयात तुझको पाकर

दिन-रात शीतल बूंदों की फुहार हैं झरती। 


तेरा ही जिक्र, तमन्ना रूबरू रहने की 

धुंद जैसे ओस के शबनम सी

कोहरे में छुपा बदली का चाँद

धूप-छाँव की लुका-छिपी नादान सी।


लब्जों की खामोशी हैं हरसू फैली

तेरी परछाई जिस्म से लिपटती

कितनी कोशिश तुझसे दूर रहने की

कशिश दिल की कुछ और ही कहती।


तेरे सुरों की सुरीली सरगम

तरंगों सी ध्वनि बिखेरती

लाख दफा रोकू मैं खुद को

क़दमों को कैसे बस में रखती।


मेरे रूह में बसती खुशबू तेरी

कस्तूरी सम खींची चली आती

ना हो जुदाई एक भी पल की

फलक से मैं दुआएँ लेकर आतीं।


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