लेखक की साधना
लेखक की साधना
लेखन कला है और लेखक उस कला का सृजनकार...
वही उसे शब्दों के माध्यम से गढ़ता है,
उसे सजाता है
संवारता है
नित्य नवीन वस्त्रों और आभूषणों से उसका श्रृंगार कर
उसे आप तक पहुँचाता है
उसकी सुन्दरता को देखकर ही आप
उस पर मोहित हो जाते है
और उसे अपने गृह की सज्जा का भार सौंपते है
कभी कभी आप स्वयं उसका भोग करते है।
उसके शब्द कभी न पुराने पड़ते हैं
और न ही मैले -कुचैले
पर हां वे शब्द हर बार आपके मन मस्तिष्क में
नए विचारों को जन्म देते है
निर्जीवता से सजीवता की ओर
शब्दों के बढ़ते कदम आपके स्पर्श से मानो
खिल उठते हो...
यही से लेखक की साधना सिद्ध हो जाती है....
