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Gurminder Chawla

Tragedy drama

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Gurminder Chawla

Tragedy drama

लांछन

लांछन

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लांछन

यह कोई नया शब्द नही

हर नारी को कभी न कभी झेलना पडता है

चाहे अविवाहित हो या विवाहिता उससे क्या फर्क पडता है।

चाहे हिंदी हो या उर्दू , कहो लांछन या तोहमत

उससे क्या फर्क पडता है ।

यू तो लांछन कई तरह के होते हैं

लेकिन रत्री के चरित्र पर लांछन के उस पर घाव हमेशा बड़े होते हैं

एक ही लांछन से वो सीता से पतिता बन जाती है

एक सबला विधवा बनते ही अबला बन जाती है ।

मर्द की भूखी निगाहें मे वो द्रोपत्री बन जाती है

ऐसा नही ये इल्जाम बाहर वाले लगाते हैं

अकसर अपने पति ही ये सितम ढाते हैं ।

सास नन्द को भी पति के कान भरने आते हैं

कभी -कभी तो पडोसी भी क्यो दूर रहे

वो भी अपना फर्ज निभाते हैं ।

कोई दुनिया को बता दे लांछन से दिल पे क्या बीती है

जाने नारी इस गंदे समाज मे कैसे जीवन जीती है ।


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