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Deepak Kumar jha

Children

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Deepak Kumar jha

Children

क्युँ हो गऐे हम इतने बडे,

क्युँ हो गऐे हम इतने बडे,

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एक बचपन का जमाना था,

जिस में खुशियों का खजाना था


चाहत चाँद को पाने की थी,

पर दिल तितली का दिवाना था


खबर ना थी कुछ सुबहा की,

ना शाम का ठिकाना था


थक कर आना स्कूल से,

पर खेलने भी जाना था


माँ की कहानी थी,

परीयों का फसाना था


बारीश में कागज की नाव थी,

हर मौसम सुहाना था


हर खेल में साथी थे,

हर रिश्ता निभाना था


गम की जुबान ना होती थी,

ना जख्मों का पैमाना था


रोने की वजह ना थी,

ना हँसने का बहाना था


क्यूँ हो गऐे हम इतने बडे,

इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था


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