Deepak Kumar jha
Action Others
"मैं जानता हूँ, मैं अर्जुन नहीं, मेरे रथ का सारथी माधव नहीं।मगर हर किस्सा याद रखा जाएगा, मेरे साथ हुए हर छल का उत्तर दिया जाएगा।"
अर्जुन नहीं
नहीं
छंद:
इंसान को डसने...
तुझे जी भर जि...
सेना का दुरुप...
चंदा मामा कवि...
मेरे कृष्णा
प्रेम ने मृत्...
मौत कितनी हसी...
जाग जरा अब निद्रा से तू, सीख जरा आत्मनिर्भरता, जाग जरा अब निद्रा से तू, सीख जरा आत्मनिर्भरता,
कुछ क्षण में फिर देखा तो वो बुला रही थी कुछ क्षण में फिर देखा तो वो बुला रही थी
भूख, प्यास से बिलखता बचपन, तड़प रहा है आज तन मन, भूख, प्यास से बिलखता बचपन, तड़प रहा है आज तन मन,
कितने ही हुआ बीमार, कितनों को दिया ये मार। कितने ही हुआ बीमार, कितनों को दिया ये मार।
निगाह की बाते निगाह से करते है हुस्न ए यार निगाह की बाते निगाह से करते है हुस्न ए यार
पथ स्वयं मार्गदर्शक बन कर, उस लक्ष्य तलक पहुंचायेगा पथ स्वयं मार्गदर्शक बन कर, उस लक्ष्य तलक पहुंचायेगा
मेरी शाम सुंदर शाम बहुत ही यादगार बहुत सुंदर हो गई । मेरी शाम सुंदर शाम बहुत ही यादगार बहुत सुंदर हो गई ।
हमें कहा हासिल ये सर्फ, के बात करे तुम्हारी आओ मिल कर गुफ्तगू, ब अंदाज़ करते है हमें कहा हासिल ये सर्फ, के बात करे तुम्हारी आओ मिल कर गुफ्तगू, ब अंदाज़ करते...
लकड़ी की नाव पर भी बैठकर नदियों को पार करते थे लकड़ी की नाव पर भी बैठकर नदियों को पार करते थे
लहू बन के दौड़ूँ पंथ कहीं ना छूटे आज़ाद करूँ कैसे साँस है तू ना रूठे लहू बन के दौड़ूँ पंथ कहीं ना छूटे आज़ाद करूँ कैसे साँस है तू ना रूठे
वह चाहता तो बहुत कुछ है, मगर अपने मन में जमे मैल को वह चाहता तो बहुत कुछ है, मगर अपने मन में जमे मैल को
किसी आशिक़ ने बो दिया हैं अपना प्यार हरा भरा करने के लिए किसी आशिक़ ने बो दिया हैं अपना प्यार हरा भरा करने के लिए
अपने कीमती लोगों को उनके साथ की कीमत बताता चल, अपने कीमती लोगों को उनके साथ की कीमत बताता चल,
हम अहिंसा के पुजारी मान रखते हैं हमेशा। हम अहिंसा के पुजारी मान रखते हैं हमेशा।
झकझोरने इस समाज को, गीत नया मैं रचती हूँ। झकझोरने इस समाज को, गीत नया मैं रचती हूँ।
जब बाबू ने बुलाकर तनख्वाह पकड़ाई कसम से दोस्तों, मेरी आंखें भर आई जब बाबू ने बुलाकर तनख्वाह पकड़ाई कसम से दोस्तों, मेरी आंखें भर आई
वैसे तो हर चीज झाँसा देती दिखी है, ज़िंदगी भी कभी कभी झाँसा देती है। वैसे तो हर चीज झाँसा देती दिखी है, ज़िंदगी भी कभी कभी झाँसा देती है।
तो दुनिया कोई ताक़त तुम्हें उस चीज़ को हासिल नहीं करा सकती। तो दुनिया कोई ताक़त तुम्हें उस चीज़ को हासिल नहीं करा सकती।
उम्मीदों की बाँह थामे निकल पड़े थे मंजिल की तलाश में उम्मीदों की बाँह थामे निकल पड़े थे मंजिल की तलाश में
विरह में विह्वल कराती है, मिलन की उम्मीद में मुस्कान वापस लाती है विरह में विह्वल कराती है, मिलन की उम्मीद में मुस्कान वापस लाती है