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ca. Ratan Kumar Agarwala

Inspirational

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Inspirational

क्यों

क्यों

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बेटी माँ से……..

 

माँ तू क्यों सदा घुट घुट कर रोती, क्यों सदा मन मसोस कर जीती?

ज़िन्दगी बची है दो चार दिन की, क्यों नहीं अपने मन से जीती?

कहाँ खो गया तेरा बचपन, कहाँ खो गया जवानी का अल्हड़पन?

जीने को ज़िन्दगी अपने ढंग से, तेरा भी तो माँ करता होगा मन?

 

क्यों बनती सदा तू त्याग की मूर्ति, अपनी इच्छाओं का घोटती गला?

तेरा भी तो है खुद पर हक़ अपना, अपने हृदय को यूँ न जला।

सबको सबकी पसंद पूछती रहती हो, तुझे भी तो है बहुत कुछ पसंद,

तेरी पसंद हमने आज तक न पूछी, सदा कर ली हमने आँखें बंद।

 

भैया के दोस्त जब भी घर आते, तू बनाती रहती थी सेवइयाँ,

मेरी सहेलियां घर आती थी जब, लेती थी तू सबकी बलइयाँ।

तेरी सहेलियां कभी घर न आई, तेरी भी तो होंगी सहेलियां?

करने को होता होगा तेरा भी मन, सहेलियों संग अठखेलियां?

 

तेरा भी तो करता है ना माँ मन, जीवन जीने को स्वच्छन्द,

फिर क्यों तू घबराती रहती कि घर में हो जाएगा अंतरद्वन्द?

माँ, छोड़ न अब यह सारी चिंता, कर लो कुछ तो अपनी मनमानी,

लोगों का काम है कहना, कहने दो, तू तो जी ले अपनी जिंदगानी।

 

“लोग क्या कहेंगे”? यह बहुत सोच लिया अब तक तुमने,

तेरी हर इच्छा का तो, बहुत अपमान किया हम सब ने।

पापा ने तुम्हें कभी नहीं समझा, न समझी तेरी कहानी,

मिटती गयी तू सब सहते सहते, रच ले अब तू अपनी कहानी।

 

जब तक तू करती सबका, सहती रहती सबकी मनमानी,

तब तक तुझे मानते महान, करते रहते “मम्मी, मम्मी”।

कभी कुछ भी छूट जाता जब, हो जाती सबकी चौड़ी जुबान,

यह तो नहीं चाहा होगा तुमने, क्या यह था तेरे सपनों का सौपान?

 

कुछ तो कर ले अपने मन की, वरना आ जाएगी गुमनामी,

कुछ तो चल तू अपनी शर्तों पर, न डर कि होंगी बदनामी।

सजा ले अपने मन का वीतान, लिख दे तू आज अपनी कहानी,

सुना दे जग को अपनी कहानी, माँ आज तुम अपनी जुबानी।

 

चाहूँ मैं बन जाऊँ अब से, मेरी माँ की पक्की सहेली,

मिल कर कर ले मन की बातें, सुलझा ले जीवन की पहेली।

अगर यही होती है परिवार की नीयत, मुझे नहीं करना विवाह,

रहेंगे हम तुम दोनों साथ, नहीं करेंगे समाज की परवाह।

 

बेटी पिता से…..

 

पापा आज पूछती हूँ एक सवाल, “माँ की क्या थी गलती”?

क्या आप का कोई फर्ज़ न था, जब माँ थी सदा सिसकती?

कुछ तो जानो माँ के मन की, कुछ तो सुनो माँ की जुबान,

क्यों होने दिया आपने सदा, बात बात पर माँ का अपमान?

 

माँ बेटी से…..

 

बेटी क्यों कह दी तूने ऐसी बात कि नहीं करेगी तू विवाह,

समय बहुत बदल गया अब, क्यों करती इतनी परवाह।

बड़े चाव से करूँगी शादी तेरी, अगर मिलेगा सही एक वर,

उन्नीस बीस कुछ हुआ भी तो, देना तुम्ही उसे संवार।

 

पढ़ा लिखा कर इतना बड़ा किया तुम्हें, मुझसे नहीं तेरी तुलना,

मैंने संभाला इस घर को, तुम तो खुद को भी संभाल लेना।

छोटी छोटी बातों को करना नजरंदाज, दिल में मत रखना,

खुद को भी संभाल लेना तुम, घर संसार भी संवार लेना।

 

पापा बेटी से…….

 

बेटी जो सवाल आज पूछा तुमने, मैं उसपर हूँ शर्मिंदा,

बहुत गलतियां हुई थी मुझसे, न रख सका रिश्ते कि मर्यादा।

जाने अनजाने किया है मैंने, तेरी माँ का बहुत अपमान,

माफ़ कर देना अपने पिता को, रखूँगा अब तेरी माँ का मान।

 

तेरी भी होंगी शादी एक दिन, मेरी एक सीख याद रखना,

पति से प्यार करना जरूर, पर अपना अस्तित्व भी बनाकर रखना।

घर परिवार को संभालना जरूर, पर खुद को बिसार न देना,

ज़िन्दगी के हर पड़ाव में, सर उठाकर सम्मान से रहना।

 


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