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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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क्यों

क्यों

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साधारण आँखों से लगता

धरती चपटी, आसमान उल्टा कटोरा 

सितारों जड़ा नीली पेंदी वाला कटोरा


वैज्ञानिक आँखों से

अंतरिक्ष की दुनिया से

पृथ्वी गोल, आसमान बृहद शून्य दिखता 


यह सोंच का विरोधभास नहीं

शिक्षा और ज्ञान का अंतर है

शिक्षित केवल दृष्टिगोचर देखता

ज्ञानी क्षितिज के उसपार देखता


सेव का नीचे गिरना

बाथटब से पानी छलकना

मानसिक बीमारी का होना

गरीबों और मजदूरों का शोषण


कोई नई बात नहीं थी

कालांतर से प्रचलित थी

लेकिन इनके पीछे की क्यों ने

दुनिया की दुनिया बदलकर रख दी


आज भी बहुत कुछ होता है

हमारे साथ आपके साथ

घर मे समाज मे

देश मे विदेश में

जाने में अनजाने में


जिसका क्यों पता नहीं

इस क्यों का क्यों

जान लेना, जाना देना


सिद्धार्थ से बुद्ध

नरेंद्र से विवेकानंद

मंदबुद्धि बालक से आइंस्टाइन

बन जाने का प्रमाण है

बन जाने की प्रक्रिया है


अपने क्यों की खोज जरूरी है

अपने क्यों की चाह जरूरी है


यही मानव जीवन का उदेश्य

यही मानव जीवन का पहचान


अपने क्यों की तलाश जरूरी

अपने क्यों की पहचान जरूरी


मिलता है यह "क्यों"

किसी को संयोग से

किसी को प्रयोग से


इस क्यों के लिए

जरिया भी अलग चाहिए

नजरिया भी अलग चाहिए


प्रयास जारी है,आप भी करो

इस दुर्लभ जन्म के

क्यों की खोज की !


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