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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

कोई कम न था

कोई कम न था

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मेरे भी थे कुछ ख्वाब 

कुछ दूर ,कुछ आसपास 

कोई शांत , कोई कोलाहल भरा

कुछ टूट गए 

कुछ छूट गए 

कुछ रूठ गए

किसी मे सूरज की गर्मी थी

किसी मे चांद की खूबसूरती थी

किसी मे सितारों की दूरी थी

हर ख्वाब की

अपनी जरूरत अपनी मजबूरी थी

कोई कम न था

खिलौनों सा ख्वाबों को संभालता रहा

ख्वाब मुझे ही खिलौना समझते रहे

जुगनू के सहारे सुबह तलाशता रहा

कोई कम न था

किसी को गम न था ।।



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