क्यों मातृ दिवस सिर्फ एक दिन?
क्यों मातृ दिवस सिर्फ एक दिन?
ये कविता उनके लिए, जिन्हें प्यार मैं करूँ बहुत,
पर कभी शायद कह नहीं पाऊँ खुद।
वो सबसे ज़ररीवो सबसे ज़रूरी, वो मेरे लिए सबसे भली,
दुनिया नागफनी तो, वो उसकी एक कली।
मैं कभी कुछ नहीं कहती, पर वो समझ जाती है,
ज्वालामुखी सी जलती है पर एक ही पल में बुझ जाती है|
वो, मेरी माँ, के लिए क्यों सिर्फ एक दिन,
मनाऊँ मैं मातृ दिवस रोज़ भूले बिन।
खुद ज़िम्मेदारी लेकर चलती सारे काम की,
मगर मैं एक बर्तन भी खंगाल दूँ, तो चिंता करती मेरी थकान की।
मेरी उबाऊ बातें सुनकर भी वो हँसती है,
मेरे रो देने पर वो ही मुझे बाहों में कसती हैं।
पिता की डाँट से बचाने वाली भी माँ है,
पर गलती करने पर पिटाई करने वाली भी माँ है।
जब मेरे लिए प्यार की बाढ़ तीन सौ पैंसठ दिन,
तो क्यों हो मातृ दिवस सिर्फ एक दिन?
हाँ, मैं कुछ खरीद के भेंट नहीं कर सकती हूँ,
पर अपनी कविता से माँ के मन में खुशी भर सकती हूँ।
मैं कोई आदर्श बेटी नहीं,
माँ के पाँव कभी छुए नहीं।
लड़ाई करती भी हूँ,
माँ से थोड़ा डरती भी हूँ।
पर फिर भी प्यार मिले मुझे मेरे अवगुण देखे बिन,
तो क्यों ना हो मातृ दिवस हर दिन ?