क्या यही प्यार है
क्या यही प्यार है
याद है वो बचपन के दिन, हम तुम खेला करते थे, गुड्डे-गुडि़या की शादी में, खेल-खेल में हम भी तो दुल्हा दुल्हन बन जाया करते थे। कभी रूठना इक-दूजे से, कभी मनाया करते थे। देख के तुझको मेरा चेहरा खिल जाता, ना देखूँ तो मुरझाया फूल सा लगता...क्या इसी को प्यार कहते हैं।
बार- बार साईकिल मैंअपनी खराब कर दिया करती थी, क्योंकि मुझको तुम सँग जाना अच्छा लगता था।
साईकिल पे कभी बैठते हुए तेरा हाथ मुझे छू जाता था, ना जाने क्या था उस छुअन में, दिल ज़ोर से धड़क जाता था। याद है क्या तुमको भी वो सब अपना lunch तुम्हे मैं खिलाती थी, कभी -कभी तो तुम्हारे लिए अपने हाथो से खाना बनाती थी ...कभी कच्चा, कभी पक्का, कभी जला खाना तुम खुश हो करके तुम खाते थे। जब भी तुमको कोई चोट लग जाती दर्द मुझे क्यू होता था।
जब हमको था college जाना,एक ही college में जाऐंगे जिद्द हमने क्यूँ ठानी थी।
Collegeजाने को पापा ने जब स्कूटी मुझको लाकर दी, नही चलानी मुझको स्कूटी, कह के वापिस वो भिजवा दी थी, क्योंकि मुझको तो तुम स्ग जाना अच्छा लगता था।
जब तुम तेज़ bike चलाते, कस के तुम्हें पकड़ती थी, लहराती मैं नदिया के जैसी, हवा सी बल मै खाती थी।
हर पल ताकती रहती हूँ मै वो अँगना, जहाँ तुम बैठा करते थे, झाँकती रहती हूँ उस खिड़की को, जहाँ से मुझको ताका करते थे। सूनी लगती है वो गलियाँ जहाँ से हम गुज़रते थे, जब तुम मेरा हाथ पकड़ते, थम जाए ये वक्त यहीं पे, ऐसे अलफा़ज़ मन से निकलते थे।
अब तुम मेरे पास नही हो, तब मुझको एहसास हुआ, अन्जानी वो कैसी डोर थी जिसने हमको बाँध लिया, ना तुम बोले, ना मैने जाना क्या यही प्यार का एहसास था।
कुछ तो बोलो, कुछ तो कह दो, क्या इसी को प्यार कहते है।