क्या याद करोगे मुझको ?
क्या याद करोगे मुझको ?
जब सुबह का साया चुपके से,
नींद की परतें खोल जायेगा
जब एक झोंका मीठी हवा का,
आस पास लहराएगा
जब सबकुछ नया होगा जीवन में,
नए कुछ वादे होंगे मन में
एक पल अलसाई आखों को मूँद कर,
क्या याद करोगे मुझको ?
जब शाम बिखरकर आएगी,
धुंधले कुछ रंग दामन मैं लिए
तुम बीते दिन का सोचोगे,
नयी उड़ान के हौसले लिए
जब बोझल व्यथित सा मन होगा,
जब तुम्हे मेरा स्मरण होगा
भीगी पलकों और मीठी मुस्कान से,
क्या याद करोगे मुझको ?
जब अँधेरा गहराएगा,
और सारा जग सो जायेगा
जब नीद से बोझल पलकों में,
एक मीठा ख्वाब लहराएगा
जब तारों की चादर ओढ़ के तुम,
चन्दा से मिलना चाहोगे
ख्वाबों की भीड़ में हकीकत मानकर,
क्या याद करोगे मुझको ?
जब मैं ना होंगी आस पास,
और जग खुद मैं ही खो जायेगा
जब भीड़ में भी अनायास,
मन एकाकी हो जायेगा
जब कुछ कहना सुनना चाहोगे,
संग हँसना रोना चाहोगे
बीते लम्हों के सान्धिय में बैठकर,
क्या याद करोगे मुझको ?
क्या याद करोगे मुझको ?