अनकहा
अनकहा
कुछ पिरोया शब्दों में, कुछ अनकहा रह गया,
मन का कोई हिस्सा उन पहाड़ों में रह गया।
कोई ख़्वाब अब भी उस तकिये पे उग रहा होगा,
दिल एक ख़ामोश बात उस आईने से कह गया।
गूँजती हैं हर पल वो मासूम मुस्कुराहटें कानों में,
मन बार बार हवाओं की उस धुन सा बह गया।
जाने क्या जादू था उस सुबह उस शाम में,
जो मेरे अँधेरे कोनों को भी रोशनी से भर गया।
कोई वादा ना इरादा ना कोई उम्मीद थी मगर,
एक आँसू उन बंद आँखों का मेरी पलकों से बह गया।