STORYMIRROR

डॉ. प्रदीप कुमार

Romance

4  

डॉ. प्रदीप कुमार

Romance

जुगलबंदी

जुगलबंदी

1 min
231


तुमने कई दिन से शराब नहीं पी है,

मैंने भी कई दिन से कविता नहीं लिखी है,

तुम्हारी आँखें ढूंढ रहीं हैं मयखाना कोई,

मेरी कलम नए शब्दों के लिए तरस रही।

नशा हम दोनों को है, अपने-अपने शौक हैं,

कोशिश खूब कर रहे, सफल नहीं हो रहे हैं,

तुम्हारे हिसाब से हम दोनों 

एक-दूजे की मदद कर सकते हैं,

तुम्हारे अनुभव मेरे कागज़ पर

कविता बनकर उभर सकते हैं।

मुझे तुम पर यक़ीन है, तुम जब नशे में रहोगे,

झूठ नहीं बोलोगे, सब कुछ सच-सच कहोगे,

पहले भी हम-तुम ने मिलकर,

कई जुगलबंदी की है,

तुमने नशे में, मैंने कल्पनाओं में,

खुलकर जिंदगी जी है।

तुम मेरे घर आ जाओ 

हाथ में छलकता जाम लेकर,

मेरे सामने बैठ जाओ तुम 

अपनी शिकायतें तमाम लेकर।

सच कहता हूं मैं तुम्हें सब्र से सुनूंगा,

उसमें कुछ अपना हुनर मिलाकर,

मैं एक नई कहानी बुनूंगा।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance