प्रेम पत्र
प्रेम पत्र
प्रिय,
अपना हाल-ए-दिल क्या बयाँ करूँ,
मेरे एहसासों को बयाँ कर दे,
वो जज़्बात... अल्फ़ाज़ों में हैं कहाँ...
तड़पता है यह दिल तेरी बेरुख़ी पर,
पर वो तड़प अल्फ़ाज़ों में है कहाँ...
थक गई हैं मेरी आँखें तेरे इंतज़ार में,
पर वो थकान अल्फ़ाज़ों में है कहाँ...
अब तो, प्रिय, बस यही कहूँगी—
जब दुनिया की चकाचौंध से जी भर जाए,
भीड़ में भी खुद को तन्हा महसूस करो,
जब तुम्हारा दिल किसी अपनेपन के लिए
तड़प उठे...
तब तो मेरे पास ही आओगे,
क्योंकि मियाँ की दौड़ मस्जिद तक...
इसलिए जल्दी से घर वापस आ जाओ,
बहुत हो गया काम के बहाने,
आज़ाद पंछी बन इधर-उधर फुदकना...
कहीं मेरी अनदेखी चंडिका स्वरूप से
हो गई भेंट,
फिर बहुत पछताओगे...।।

