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विजय बागची

Romance

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विजय बागची

Romance

क्या तुम आओगे

क्या तुम आओगे

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क्या तुम आओगे इस बार,

सचमुच गले लगाओगे इस बार।


ये प्रेम डालियाँ सूख रही,

पंखुड़ियाँ भी प्रतिदिन रूठ रहीं,

अमृत वर्षण बरसाओगे इस द्वार,


क्या तुम आओगे इस बार,

सचमुच गले लगाओगे इस बार।


हृदय कंपन अतितेज़ हुआ,

रक्त प्रवाह निर्वेग हुआ,

शीश हस्थ सहलाओगे इक बार,


क्या तुम आओगे इस बार,

सचमुच गले लगाओगे इस बार।


बैरी बैरी जग जग कहलाया,

शीतलता न पग पग पाया,

वाच्य मृदु पहुँचाओगे इस बार,


क्या तुम आओगे इस बार,

सचमुच गले लगाओगे इस बार।



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