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विजय बागची

Abstract

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विजय बागची

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चाय

चाय

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वो हल्की सी रंग में हर मौसम का साथी,

हर नगर हर डगर हर प्रहर में मिल जाती,

शाम ढलती हो या फिर सुबह हो जाती,


अक़्सर हाथों में मेरी प्याली है आती,

वो हल्की सी रंग में हर मौसम का साथी।


शब्दों की भीड़ में जब पास वो आती,

थोड़ी  सी गुप्सुप  में आधी हो जाती,


उतर के गले  से साँसों में खो जाती,

थोड़ी सी बच के पूरी की याद दिलाती,

वो हल्की सी रंग में हर मौसम का साथी।


सफर में जब भी राही की याद आती,

इक प्याली ही है जो हमसफ़र हो जाती,


यादों में भी जो भोज्य के काम आती,

वो हल्की सी रंग में हर मौसम का साथी।


तीखी, कभी मीठी कभी फीकी हो जाती,

हर रूप हर घूँट में मुझ को है रास आती,


चाहे थोड़ी चाहे ज़्यदा बस बातें हो बाकी,

वो हल्की सी रंग में हर मौसम का साथी।


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