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विजय बागची

Abstract

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विजय बागची

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यह कैसा रिश्ता

यह कैसा रिश्ता

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इतने फ़ासलों का तुम्हारा यह कैसा रिश्ता है,

दर्द पूछता है मुझ से यह दर्द किसका है


वो सवालों की ढ़ेर का मुझ पर वार करता है,

वो पूछता है मुझसे तू किसको प्यार करता है,

मैं इतना खोया हूँ रहता कुछ कह नहीं पाता,

कि इन ख़ामोशियों में छिपा ये गर्द किसका है,


इतने फ़ासलों का तुम्हारा यह कैसा रिश्ता है,

दर्द पूछता है मुझ से यह दर्द किसका है


नहीं भूलता मुझ को वो गुज़रा हुआ पल,

नहीं जाता मुझ से दूर वो बीता हुआ कल,

जिसकी याद में यह वक़्त बेवक़्त हो रहा,

कहूँ कैसे मेरा यह वक़्त हमदर्द किसका है,


इतने फ़ासलों का तुम्हारा यह कैसा रिश्ता है,

दर्द पूछता है मुझ से यह दर्द किसका है।


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