विजय बागची
Abstract
इत्र तुल्य इज्जत यहाँ,
छण भर का मेहमान।
दुर्गुणता निज हस्त ही,
निज हस्त ही सम्मान।।
बेवफ़ा
इज़्ज़त
बढ़े कदम
प्यार नहीं कर...
यह कैसा रिश्त...
रूह में बस जा...
हम क्या लेकर ...
शुरुआत
चाय
क्या तुम आओगे
पूछता फिरता हूँ पता खुद ही से खुद का धोबी का कुत्ता हूँ मैं घर का ना घाट का ।। पूछता फिरता हूँ पता खुद ही से खुद का धोबी का कुत्ता हूँ मैं घर का ना घाट का ...
तब तुमने मुझसे उस ख़ामोशी में भी कुछ न कुछ बुलवाया है, तब तुमने मुझसे उस ख़ामोशी में भी कुछ न कुछ बुलवाया है,
यहाँ सच के आगे झूठ की दादागिरी नहीं चलती। यहाँ सच के आगे झूठ की दादागिरी नहीं चलती।
अपने कहे हर शब्द के लिए, मैं आइना बन जाउंगा। अपने कहे हर शब्द के लिए, मैं आइना बन जाउंगा।
वो हमें ठीक से परख लेते तो कभी, वो हमें ठीक से परख लेते तो कभी,
स्वीकार कर रहे हैं उसी गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और अशिक्षा को स्वीकार कर रहे हैं उसी गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और अशिक्षा को
नफरत से अब नफरत न कीजिए नफरत को भी भरपूर सम्मान दीजिए। नफरत से अब नफरत न कीजिए नफरत को भी भरपूर सम्मान दीजिए।
खुद अंधेरे में रह जाता है जग को रोशन कर जाता है खुद अंधेरे में रह जाता है जग को रोशन कर जाता है
हमने खुद को ज़िंदा जलते देखा है रोशन दिन आँखों में ढलते देखा है। हमने खुद को ज़िंदा जलते देखा है रोशन दिन आँखों में ढलते देखा है।
औरों के कष्ट मिटाकर खुद कष्ट उठाए नेकी करके भी बदनामी ही पाए औरों के कष्ट मिटाकर खुद कष्ट उठाए नेकी करके भी बदनामी ही पाए
इक दूजे पे है विश्वास जिंदा है प्रेम जीवन की साँस। इक दूजे पे है विश्वास जिंदा है प्रेम जीवन की साँस।
यदि खुद को संभाल न पाए, जीवन में पीछे रह जाओगे तुम मै हूँ कौन, क्यों हूँ यहाँ कर्तव्य। यदि खुद को संभाल न पाए, जीवन में पीछे रह जाओगे तुम मै हूँ कौन, क्यों हूँ यहाँ...
किसी के विचारों के द्वार ही होंगे वक्त की ज़रूरत होगी उनके सपने होंगे। किसी के विचारों के द्वार ही होंगे वक्त की ज़रूरत होगी उनके सपने होंगे।
जिस पल तुम्हें अच्छे-बुरे का सम्यक ज्ञान प्राप्त होगा, जिस पल तुम्हें अच्छे-बुरे का सम्यक ज्ञान प्राप्त होगा,
तुम्हारे चेहरे पर गुरुर नजर आता है मुझे तो हर तरफ इश्क़ नजर आता है। तुम्हारे चेहरे पर गुरुर नजर आता है मुझे तो हर तरफ इश्क़ नजर आता है।
'अ' अनार से शुरू कर 'ज्ञ' ज्ञानी तक पहुँचाती हूँ 'अ' अनार से शुरू कर 'ज्ञ' ज्ञानी तक पहुँचाती हूँ
हृदय की दूरियाँ बढ़ी इतनी अपने भ्राता नहीं अपने रहे, हृदय की दूरियाँ बढ़ी इतनी अपने भ्राता नहीं अपने रहे,
रोज उतारू नजर तुम्हारी , जान भी मेरी जान, तुझ पे वारी है , रोज उतारू नजर तुम्हारी , जान भी मेरी जान, तुझ पे वारी है ,
लोगों को मुर्दे से संवाद करने के अनुभव प्राप्त करने सुअवसर दे दिया। लोगों को मुर्दे से संवाद करने के अनुभव प्राप्त करने सुअवसर दे दिया।
खामोशी मेरी बताती है बात मेरी जज़्बाती है। खामोशी मेरी बताती है बात मेरी जज़्बाती है।