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विजय बागची

Abstract Romance Others

4.3  

विजय बागची

Abstract Romance Others

बेवफ़ा

बेवफ़ा

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47


जाओ ढूंढो और बताओ उस को,

कि कोई इंतजार नहीं करता,

बेवफ़ाओं से कभी कोई प्यार नहीं करता।

वो थकता है, टुकड़ों में बंटता है,

फिर भी इकरार नहीं करता,

बेवफ़ाओं से कभी कोई प्यार नहीं करता।


समय के वृक्ष से तबस्सुम चुन लेता है,

ख़्वाबों की शहनाई से उधार धुन लेता है,

संयोग कर दोनों का गुज़ारता है ज़िन्दगी,

सफ़र के ऐसे ही लम्हों से संवारता है जिंदगी,

पर दिल-ए-मजरूह, ग़म उज़ार नहीं करता,

बेवफ़ाओं से कभी कोई प्यार नहीं करता।


उसके अश्कों में भी समंदर होता है,

जब होता है अकेला तब ही रोता है,

मुस्कान भी उसकी असल है लगती,

पलकें हैं झुकी होती आँखे हैं जगती,

फिर भी तर्क-ए-मोहब्बत में तुझे,

कभी बाज़ार नहीं करता,

बेवफ़ाओं से कभी कोई प्यार नहीं करता।


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