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विजय बागची

Abstract

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विजय बागची

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हम क्या लेकर आये

हम क्या लेकर आये

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हम क्या लेकर आये थे,

क्या लेकर जाएंगे,

कुछ पास नहीं था मेरे,

क्या देकर जाएंगे।


कुछ अच्छे कर्म बनाकर हम,

खुशियाँ लेकर आये थे,

कुछ अच्छे कर्म सँजोकर हम, 

यादें देकर जाएंगे।


मुट्ठी में थोड़ी लकीर लिये,

यूँ रोते-रोते आये थे,

उस आखिरी सफ़र में हम,

सोते-सोते जाएंगे।


सब कुछ हासिल करने आये थे,

सब कुछ हासिल कर जाएंगे,

पर वक़्त की आखिरी मोड़ पर,

सब खोते-खोते जाएंगे।


यह जीवन एक सफर है,

सब मुसाफ़िर बन यहाँ आएंगे,

बस अपनी बारी आज यहाँ,

कल हम भी मुसाफ़िर कहलाएंगे।


रक्खा मन में कोई द्वेष नहीं,

ना ही रखकर कुछ जाएंगे,

सबसे मिल जुलकर हम,

अपना हर वक़्त बिताएंगे।


बस मोह के बंधन में बंधकर,

सब करते ही चले जाएंगे,

जब आँखें बंद करूंगा मैं,

सब ख़्वाब ही कहलाएंगे।


हम कुछ लेकर ना आये थे,

ना कुछ लेकर ही जाएंगे,

पर जितना वक़्त मिला हमको,

हम सबको देकर जाएंगे।


जब साथ नहीं होंगे हम,

जब पास नहीं होंगे हम,

सब इन यादों और बातों से,

थोड़ा तो वक़्त बिताएंगे।


कुछ अच्छे कर्म बनाकर हम,

खुशियाँ लेकर आये थे,

कुछ अच्छे कर्म सँजोकर हम, 

बस यादें देकर जाएंगे।


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