क्या लिखूं ...!
क्या लिखूं ...!
क्या लिखूं
तेरी इस मुस्कराहट पर
देख कर मैं बस
खो सा जाता हूं।
क्या कहूं
तेरी मासूम अदाओं पर
मदहोश मैं बस
तेरा हो जाता हूं।
सोचता हूं
सुलझाऊं तेरी उलझी लटों को
जिसमे मेरा दिल
बस उलझा रहता है।
थाम लूं
तेरे उड़ते आंचल को
जो भरी जवानी
तुझे ओढ़े रहता है।
लिख दूं
दो आखर कुछ तेरे
मदमस्त नैनों पर
जो मुझसे हरदम शिकायत करते रहते हैं।
छूं लूं
तेरे नर्म गुलाबी होंटों को
जो एक अलग सा नशा
घोले रहते हैं।
खोल दे
बंद अपनी इन पलकों को
जो मेरे ख्यालों में ही
डूबे रहते हैं।
आ चले फिर
उन हंसीन वादियों में
जहां दो बेसब्र दिल
मिलने को बेकरार हुए रहते हैं।