क्या लिखूँ
क्या लिखूँ
क्या लिखूँ और कितनी दफ़ा लिखूं,
इक बेटी के रुदन और चीख़ को
भला कितनी दफ़ा उकेरूँ।
शादनगर में शाद रेड्डी को
मदद के नाम पर जला दिया गया ?
ऐसी इंसानियत और हैवानियत को
कितनी दफ़ा लिखूं।
क्या लिखूँ ...
वासना से डूबी नज़र लिखूँ और
नोच खा जाने वाली प्रवृत्ति कितनी दफ़ा लिखूं,
इक चिड़िया के दर्द और तड़प को
भला कितनी दफ़ा उकेरूँ।
क्या किसी का डॉक्टर होकर ख़ूबसूरत होना
और मदद मांगना गुनाह हो गया ?
ऐसे मददग़ार और राक्षसों की
दरिंदगी कितनी दफ़ा लिखूं।
क्या लिखूं ...
शांत रह जाने वाले हुक्मरानों और
हैशटैग करके कुछ दिन तक न्याय मांगने
वालों को कितनी दफ़ा लिखूं,
इक फूल की वेदना और
कुकृत्य को भला कितनी दफ़ा उकेरूँ।
क्या लड़की होकर अपने
उसूलों पर जीना कसूर हो गया ?
ऐसे मुखौटे समाज और उसमें छिपे
भेड़ियों को कितनी दफ़ा लिखूं।।
क्या लिखूँ ...