क्या लिखूं तुझ पर
क्या लिखूं तुझ पर


क्या लिखूं तुझ पे
तू तो बस एक राज है
जिसे सब से छुपा के सुनती हूँ
तू वो साज है,
चुपके से मिलता है सपनो में मेरे,
सुबह उठ के ढूंढती हूँ
फिर निशान तेरे
भूल जाती हूँ ये कहानी
अधूरी ही रहेगी
पर तुझसे सपनों में बातें करने वाली
मैं तो बस तेरी ही रहूँगी
सोचती हूँ कभी तुझ से मिली ही क्यों
जब मैं ज़िन्दगी ना तेरी
फिर ख्याल आता है हकीकत ना सही
सपनों में ही मैं तेरी ज़िन्दगी तो रहूँगी