मैं, मेरी कहानी

मैं, मेरी कहानी

1 min
337


यूं ही नहीं मजबुर होती हूं मैं

वक़्त के आगे झुक जाती हूं मैं

बहुत मुश्किल से खुद को संवारती हूं रोज

आइने से खुद की नजर चुराती हूं मैं

लाखो दर्द सीने में दबाए

हर दिन सुबह घर से निकलती हूं मैं

थक कर जब घर लौंटू 

आसूं हजार बहा कर सो जाती हूं मैं

कभी खुद से कभी हालातों से

लड़ती रहती हूं मैं

वक़्त करवट लेगा किसी दिन

सुख के दिन भी आएगें एक दिन

यही दिलासा खुद को देती हूं मैं

एक जीने कि वजह हर रोज तलाशती हूं मैं

मिटने से पहले ना मिट सके

वो वजूद मेरा बनाना चाहती हूं मैं.......

- Monika Lambekar


Rate this content
Log in