मैं, मेरी कहानी
मैं, मेरी कहानी
यूं ही नहीं मजबुर होती हूं मैं
वक़्त के आगे झुक जाती हूं मैं
बहुत मुश्किल से खुद को संवारती हूं रोज
आइने से खुद की नजर चुराती हूं मैं
लाखो दर्द सीने में दबाए
हर दिन सुबह घर से निकलती हूं मैं
थक कर जब घर लौंटू
आसूं हजार बहा कर सो जाती हूं मैं
कभी खुद से कभी हालातों से
लड़ती रहती हूं मैं
वक़्त करवट लेगा किसी दिन
सुख के दिन भी आएगें एक दिन
यही दिलासा खुद को देती हूं मैं
एक जीने कि वजह हर रोज तलाशती हूं मैं
मिटने से पहले ना मिट सके
वो वजूद मेरा बनाना चाहती हूं मैं.......
- Monika Lambekar