क्या कहूँ क्या न कहूँ
क्या कहूँ क्या न कहूँ
कुछ तो कहना था, पर क्या कहूँ, क्या न कहूँ ?
कुछ तो लिखना था, पर क्या लिखूँ, क्या न लिखूँ ?
बड़ी कशमकश है, बड़ी उलझन है, दिल में बड़ी धड़कन है।
भाव भी सारे उलझ से रहें, कहीं कुछ तो गहरी चुभन है।
कहना चाहूँ, कह न पाऊँ, लिखना चाहूँ, लिख न पाऊँ।
सुलझना चाहूँ, सुलझ न पाऊँ, उलझनों में उलझता जाऊं।
परेशानियां बहुत हैं जीवन में, किस किस के बारे में लिखूँ ?
बड़ी अड़चनें हैं ज़िन्दगी में, किस किस के बारे में कहूँ ?
राह में मिलते लोग बहुतेरे, किस किस के बारे में सोचूँ ?
कहने को तो बातें बहुत हैं जीवन में, क्या कहूँ क्या न कहूँ ?
देखता हूँ ज़िन्दगी की विषमतायें, किस किस की मैं बात करूँ ?
खाली पन्नों की बात करूँ, या कड़वी यादों की बात कहूँ ?
भरे पड़े हैं ज़िन्दगी के लम्हे, भूली बिसरी कई यादों से,
किन किन को याद करूँ, किस किस याद की बात करूँ ?
मिलते जीवन पथ पर रोज अनेक, किस किस से मैं बात करूँ ?
किस किस से अपना दुखड़ा गाउँ, किस किस से फरियाद करूँ ?
चुप रह रह कर भी थक चुका, किस से क्या मैं बात कहूँ ?
कोई नहीं है सुनने वाला, किसको कैसे मैं क्या सुनाऊँ ?
अकेले भी तो रह नहीं सकता, कौन है जिसके साथ रहूँ ?
ख़ुद पर भी तो भरोसा नहीं, कैसे किसी पर विश्वास करूँ ?
कदम कदम पर धोखे खाएं, कैसे फिर मैं कदम बढ़ाऊं ?
ज़िन्दगी में मिले कई थपेड़े, कैसे ख़ुद का साहिल पाऊँ ?
रुसवाइयाँ भी मिली बहुत, रुसवाइयों से कैसे बच पाऊँ ?
मंजिल भी बड़ी दूर है अभी, कैसे मैं आगे बढ़ पाऊँ ?
सवाल जवाब तो बहुत हैं मन में, “हाँ” करूँ या “ना” करूँ ?
भाव बहुत उमड़ते मन में, “सवाल” कहूँ या “जवाब” कहूँ ?
नया नया रिश्ता हैं यह, “अपना” कहूँ या “पराया” कहूँ ?
कई घटनायें हुई जीवन में, “धोखा” कहूँ या “हादसा” कहूँ ?
राह में पथिक मिलते बहुतेरे, “कतरा” जाऊँ या “बात” करूँ ?
उलझने ऐसी भरी पड़ी हैं, कैसे इनको मैं सुलझा पाऊँ ?
कुछ तो कहना था, पर क्या कहूँ, क्या न कहूँ ?
कुछ तो लिखना था, पर क्या लिखूँ, क्या न लिखूँ ?
कहना चाहूँ, कह न पाऊँ, लिखना चाहूँ, लिख न पाऊँ।
सुलझना चाहूँ, सुलझ न पाऊँ, उलझनों में उलझता जाऊं।
बड़ी जटिल है यह उलझन, और अधिक मैं उलझता जाऊँ ?
मन में जगा घोर वीतराग, कैसे ख़ुद से मोह जगाऊं ?