क्या जाने वो क्या था
क्या जाने वो क्या था
वो क्या था गली के मोड़ पर तुझको एक नज़र देखने पर दिल की अंजुमन में खलबली का मचना..
क्या था वो मंदिर की चौखट पर तुम्हारे काँधे से मेरे कंधे का टकराना उस पर मेरी नज़रों का झुक जाना..
क्या जानें वो क्या था मेरी गलियों से बेमतलब तुम्हारा बार-बार रुख़ करना खिड़की से तुम्हें झाँकते मेरे लबों पर हंसी का ठहरना..
एक दिन तुम्हारे दीदार न होने पर दिल का तड़पना और उस पर नैंनों से चार बूँद टपकना क्या था..
वो क्या था बातों-बातों में तुम्हारे नाम का ज़िक्र करते हया में पलकों का झुकना उस पर तुम्हारा तंज कसते मेरे एहसासों को छेड़ना..
जानें वो क्या था तुम्हारे प्रति चाहत से सराबोर बहते स्पंदनों को मेरा बेख़ौफ़ ज़माने के आगे उकेरना..
वो क्या था बार-बार तेरे इश्क में मेरी मोहब्बत का बिकना उस पर तुम्हारा फ़िदा होते आँख मारना..
लो फिर एक बार और तुम्हारी अदाओं पर मेरी प्रीत को बिकते देखकर कहो वो क्या था मेरी हथेलियों को तुम्हारा चुमना..
क्या था वो मेरी हर तकलीफ़ पर तुम्हारे अश्कों का पिघलना उस पर तुम्हारे अश्कों को मेरी पलकों पर मेरा थामना..
"न तुमने जाना न मैंने वो प्यार था या कुछ और था क्या जानें वो क्या था"
मेरी बिदाई पर तुम्हारा चुपके से एक कोने में खड़े नैंन भिगोना क्या था,
उस पर मेरे दिल में उठते शोलों से लड़कर मन करता था दुनिया भूलाकर तुमसे लिपट जाऊँ..
कोई तो कहो वो क्या था???
शायद तू लकीरों में नहीं था, मिला जो एक और जन्म तुझे अपने हक में लिखवा के आऊँगी..
पूछना न पड़े ये सवाल की वो क्या था? इतनी शिद्दत से तुझे चाहूँगी
खुदा खुद कहेगा ये प्यार था कुछ और नहीं तुझे अपना बना के मानूँगी।