क्या हुआ तेरे पास नही हैं तो
क्या हुआ तेरे पास नही हैं तो
क्या हुआ तेरे पास नहीं हैं तो
वो दिल की धड़कनें आज भी वहीं से आती हैं
वो अपनी चाहत आज भी दिल मे ही बस्ती है
वो मिलने की राहत आज भी सुकून देती है
वो आशिक़ी की सुर्खियां आज भी याद आती हैं।
क्या हुआ तेरे पास नही हैं तो।
क्या हुआ तेरे पास नही हैं तो
चाहत तो तेरी हर रोज बढ़ती है
कभी हल्के से तो कभी आहिस्ता से तू हर रोज दिल मे बसता है,
साथ तेरे रहने का हर सपना आज भी मेरी चाहत के नगमे पिरोता है,
कभी धूप में तो कभी छाँव मे हर रोज तेरी यादों में बिलख जाती हूँ,
क्या हुआ तेरे पास नही हैं तो।
कभी रातों में तो कभी दिन के सपनो में तू आज भी आ ही जाया करता है
कभी दिल को समझता है तो कभी मेरे सपनों को समझता है,
तू आज भी वही है, उन गलियों में या उन यादों में
उन आहत में या उन झरोखों में
उन सांसो में या उन शरारतों में
आखिर क्या हुआ अगर तुम पास नहीं तो।

