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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

☆ क्या हम बदल रहे? ====

☆ क्या हम बदल रहे? ====

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वक्त की तुला

बुुुला बुुला 

रही है सुुुना,

तान बान खनक रहें

मानव मन झनक रहें

दिशा दशा पलट रहें

लगता है हम 

बदल रहें।


एक शोर

हुुुुजूम का

कुुछ ऐसा

लहराता है

गतिहीन होकर 

हर रूप मेें

जीवन ठहर रह जाता है,

कुुछ वह कहते

तो वह भी बिन कहे

रूक कहाँ पाते 

दलदल एक हीं

धंंसे सब जा रहें हैं,

लगता है हम 

बदल रहे हैं।


क्या अंतर 

बोलो सब जो खड़े

अंंगार बने

शब्दों के संग,

रूप रंंग आज अब

करता है दंग

क्योंकि समय मेें ऐसे

कहाँ हम पले बढे,

हम तो एकरंग हुुए

नई ऊँचाई तक चले चढ़े

बँँटते हुुए हम 

कहाँ जा रहेें,

लगता है

हम बदल रहें।


नई किरणें

उम्मीद की

झन झन कर

मन में झनक रहेें,

अंंतर्मन मेें

मोहक जुमले से ऐसे

भावना दबी

मचल उठी,

पर पल पल

बदलते रंग मलंग 

के ढंग से

छिन्न भिन्न होता

सदा सजीला

हर रंग मेें गीला

ढंंग समाज के बेरंग हुुए

मुुुुठ्ठी में रेत की भांति

फिसलते जा रहें हैं,

लगता है

हम बदल रहें हैं।


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