क्या चाहती है जिन्दगी ?
क्या चाहती है जिन्दगी ?
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ऐ जिन्दगी,
बता तू मुझसे क्या चाहती है।
रोज सुबह से कोशिश में लग जाती हूं,
अपना अस्तित्व ढूंढने में
पर तू रोज ही समझौते कराती है।
रखती हूं हिम्मत कुछ कर गुजरने की,
पर तब क्यूं हमेशा निराशा ही दिखाती है।
ऐ जिन्दगी, बता तू मुझसे क्या चाहती है
मार्ग की तरह अनवरत चली जा रही हूं,
क्यूं नहीं मुझे तू मन्जिल दिखाती है।
आशा की चाहत में
बाहर निकलकर जो देखती हूं,
तो हर आदमी में
राजनीति ही दिखाती है।
ऐ जिन्दगी, बता तू मुझसे क्या चाहती है
हूं इन्दू मैं हर जगह शीतलता ही चाहती हूं
पर तू क्यूं मुझे हर जगह तपता
रेगिस्तान ही दिखाती है।
ऐ जिन्दगी, बता तू मुझसे क्या चाहती है।