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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Romance

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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Romance

कविता ! सुनो न ..

कविता ! सुनो न ..

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कविता ! सुनो न..

कब तक रूठी रहोगी ऐसे ही !!


पता है मुझे

नहीं हो सकेगा कोई परिवर्तन

मेरे यूं "लिखने" से 

क्योंकि क्रांति नहीं हैं मेरी कविताएं !!


जंगलों की कब्रों पर

उगती रहेगीं गगनचुंबी इमारतें यूं ही ,

लौटते रहेगें वापस मायूस हो

ये बादल यूं ही आकाश में

बिना बरसे हुए ही ,

बीत जाएंगे सावन सूखे

बिना भीगे हुए ही ,

दुबकी पड़ी रहेंगी किसी कोने में

ये कागज़ की नावें ,

कहीं नहीं दिखेगी चिरैया

किसी भी डाल पर ,

..और इस तरह

रह जायेगें अधूरे ही

सभी प्रेम-पत्र इंतज़ार में !!


कविता ! सुनो न..

अब मान भी जाओ ,

संभवतः तुम्हारे लौट आने से

लौट आएंगे - बादल, बारिश और चिड़ियां

हरे जंगलों में ,

और..

सावन की फुहारों में

एक लड़की लिख रही होगी 

कोई खत !!



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