कवि की कविता
कवि की कविता
यूँ अचानक ज़हन में छा जाती है,
जीना दूश्वार कर जाती है,
हृदय को बेतहाशा तड़पाती है,
हर तरफ वो-ही-वो नज़र आती है,
कभी दृश्य बनकर,कभी श्रव्य बनकर,
हर विषय पर सामने उभरकर आती है,
शब्दों की माला बनकर पन्नों पर बिखर जाती है,
कभी उसकी शक्ति है तो कभी उसकी भक्ति है,
ये हिंदी-साहित्य के जगत में सर्वत्र नजर आती है,
वेशभूषा नगण्य है इसकी,
यह लोकमानस के पटल पर अंकित हो जाती है,
राष्ट्रीय एकता, अखंडता, भाईचारा,
प्रेम का प्रतीक बनकर हृदय में समा जाती है,
तभी तो ये कवि की कविता कहलाती है।