रंग दो बृज के लाल
रंग दो बृज के लाल
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रंग दो बृज के लाल ऐसे,
जैसे,राधा पे तूने रंग डारी,
लजा गई थी वह बिचारी,
रंग फेंकी थी यमुना तीरे,
खुशी से चल पड़ी वह धीरे-धीरे,
रंग बरसी थी कुंज गलियन में,
छलक पडे़ थे असुँवन नयन में,
संपूर्ण सृष्टि पर रंग बरसाई,
देखकर यह तो मैं हरषाई,
मन करता है मैं भी कान्हा,
तेरे हर रंग में रंग जाऊँ,
छूट ना पाए मन का एक भी कोना,
यही बात मैं तुझसे कह जाऊँ।