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Sweta Kumari

Abstract

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Sweta Kumari

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माँ शारदे की चिठ्ठी

माँ शारदे की चिठ्ठी

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अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाई,

मैंने पूछा-कौन हो भाई?

डाकिये ने आवाज लगाई,

आपके नाम की चिठ्ठी है आई।

चिठ्ठी को उलट-पलट कर देखा,

मेरे समझ ना आई

मैंने पूछा ये चिठ्ठी कहाँ से आई, किसने भिजवाई।

खैर, खोलकर देखा तो उसमें संदेश था भाई,

अज्ञान के अंधेरे में सृष्टि है समाई।

हाय!अब मनुष्यता भी हो गई पराई,

भ्रष्टाचार के हलों से हो गई इसकी जुताई।

गरीबों के बीच आज है भूखमरी छाई,

ज्ञान की देवी बनकर मैं इस संसार में आई।

विद्या से भी तूने कर ली ठगाई,

हाय! मनुष्य तुझे जरा भी लज्जा ना आई।

पापकर्म से तूने कर ली सगाई,

ये पढ़कर मेरी आँखें भर आई।

सच्चे ज्ञान के प्रकाश से,

मानव मस्तिष्क की करनी होगी सफाई।

पूरी चिठ्ठी पढी़ तो तब समझ मैं पाई,

अरे, यह तो माँ शारदे की चिठ्ठी है आई।



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