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Meena Mallavarapu

Tragedy

4  

Meena Mallavarapu

Tragedy

कुतरे पंख

कुतरे पंख

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 इन पंखों का करूं अब क्या,समझ न पाऊं

 ज़िंदगी तेरे इरादे समझ न पाऊं

 गर कुतरने ही थे पंख मेरे

 क्यों उड़ने की दी ख़्वाहिश 

 क्यों सजाए पंख मेरे

क्यों दिये सपने समझ न पाऊं

 कुतरे इन पंखों का अब क्या करूं , समझ न पाऊं।

 जुनून मिल गया मिट्टी में , आस निरास भया

 तूफ़ानों ने घेरा , अँधेरों ने धर दबोचा

 लगा भर गया झोला , भार अब कैसे करूं बयां

जाने क्या तकदीर ने मेरे लिए सोचा

  थाल जो परोसा उस ने, न थी उसमें नहीं दया

 कुतरे इन पंखों का अब क्या करूं, समझ न पाऊं।

  तो क्या उम्र भर बीती बातों का रोना रोऊं

  कभी इसे कभी उसे दूं इल्ज़ाम 

  हो कर लाचार दुखी, अपना बोझा ढोऊं, 

 जानते हुए कि आएंगे न काम

 आंसू ,आहें, गिले ,शिकवे -बस निराशा बोऊं

कुछ तो ऐसा करूं , बची खुची सही, ख़ुशियां वापिस लाऊं।

 बटोर लूं जो बटोर सकूं, मुस्कुराहट को न दूं तिलांजलि

   गिन लूं अपनी नेमतें, निराशा, हताशा को दूर करूं

    माधुर्य का आह्वान करू, क्लेश को अलविदा

    सपने सच हो जाएं सारे तो मेरा क्या किया धर

   सजा ले सपने नये, दे दे बीती बातों, सपनों को तिलांजलि

ख़ुशियां अब दूर नहीं, अब यही बात अपने मन को मैं समझाऊं।



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