STORYMIRROR

RAKESH KUMAR YADAV

Abstract Inspirational Others

3  

RAKESH KUMAR YADAV

Abstract Inspirational Others

कुंडलियाँ

कुंडलियाँ

1 min
81

कोरोना के दंश से, हुआ व्यथित संसार।

रक्त बीज का रूप धर, करने चला विनाश।।

करने चला विनाश, मूक भइ जनता सारी।

अस्त्र शस्त्र नहि हाथ, सभी पर पड़ती भारी।।

बीत गए षट मास, अभी कितना है खोना।

होगा कैसे दूर, जगत से यह कोरोना।।

समय अभी प्रतिकूल है, रखिए इसका ध्यान।

जगत चिकित्सा जो कहे, उसको ले सब मान ।।

उसको ले सब मान, समझ कर जिम्मेवारी।

जन- जन का सहयोग, बनेगी हिस्सेदारी।।

निज का स्वयं बचाव, बनाये इससे निर्भय।

रहे सदैव सचेत, है अभी प्रतिकूल समय ।।

ढूंढ रहे संत्रास का, मिल जाएगा तोड़।

मिले न जब तक हम सभी, बन जाए रणछोड़।।

बन जाए रणछोड़, यही है कर्म हमारा।

विज्ञ जनों की बात, बसाए उर में सारा ।।

इसकी है क्या युक्ति, कितना दुःख दर्द सहे।

होगा इक दिन दूर, वैद्य औषधि ढूंढ रहे ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract