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Prakash kumar Yadaw

Tragedy

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Prakash kumar Yadaw

Tragedy

कुदरत

कुदरत

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 कल तक प्रकाश में रहता था,

आज रह रहा हूं तन्हा मैं अंधकार में।


साथी ने वादा किया है आने का,

वीरान में खड़ा हूं उसी की इंतज़ार में।


कल तक हँस रहा था मुस्कुरा रहा था,

आज रो रहा हूं किसी की प्यार में।


कुदरत ने ही मिलाया और जुदा किया,

मुझे तो सुकून मिलेगा उसी की दीदार में।


कुदरत के खेल निराले हैं अजीब है,

प्रेमी बिछड़ते ही रहे हैं इस संसार में।


शायद कुदरत को पसंद है दो प्रेमी की जुदाई,

तभी कुदरत सुनता नहीं है प्रेमियों की दुहाई।


दो प्रेमी बछड़कर मृत समान हो जाते है,

रहते हैं हर पल विरह वेदना के विस्तार में।


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