कुछ पुराने ख़त
कुछ पुराने ख़त


कुछ पुराने खतों को सहेज के रखा है। ना हो परेशान वो वक़्त की रेत से, कपड़े की तहों में लपेट के रखा है।
कभी गलती से ऊँगली उधर चली जाये तो सिलवटों में वक़्त की मार से परेशान वो खत आज भी आँसुओ से मेरा स्वागत करते हैं।
वो पहला खत जो भेजा था स्कूल से पापा को फीस के लिये। जिसका जवाब हमेशा मनी आर्डर के रूप मे आता रहा। आज भी पिता के मर्म स्पर्श की याद दिला जाता है।
ना पिता रहे ना वो मनी आर्डर बस याद है जो संग उन लम्हों के बिताई। कभी-कभी खत आता है माँ का दुःखो की तासीर से लबालब जो बताने को मजबूर अपने बेटे को उसके घर की स्थितियों से की न हो परेशान बेटा दुःख तो है तरह-तरह के पर बाकी सब ठीक है।
आज इन पुराने खतों में एक चमकीला खत खुशबू से निचुड़ा मिला। जो बर्बस मेरी जवानी के फूटते झरने को बयां करता इठला रहा था कि कभी हम भी जवानी की हुंकार मे गलतियां किया करते थे। वो खतो मे हुआ प्यार पन्नों में रह के समा गया।
बस जब भी इन्हें खोलता हूँ ये दे जाते हैं चुपके एक हल्की सी मुस्कान।
काश भगत फिर खत लिखूँ वो ही पुरानी यादों में जाने को जिनमें रहकर जिया बचपन, जवानी और आज उम्रदराज हो के भी जिनकी याद जेहन में आज भी ठिठुरन छोड़ जाती है। चलो आज हमारे खत नये हुए तो क्या, कभी हमारे खतों को पढ़कर भी हमारी पीढ़ी भी सिहर जाएगी और उनकी आँखो से पढ़कर हमारी यादें भी एक पुराना खत बन जायेगी।