कुछ पल ख़ुद के साथ
कुछ पल ख़ुद के साथ
ना कोई कहीं आ पाए ना कोई कहीं जा पाए
ना कोई कहीं आ पाए ना कोई कहीं जा पाए
क्यूँ ना इसी बहाने खुद से मुलाकात हो जाए!
सवाल इक अक्स से पूछा जाए
दिखते तो मुझ जैसे हो
क्या वाकई में "खुद" बन पाए?
औरों की ज़िंदगी जीते जीते
क्या खुद की कमी महसूस कर पाए?
यूं ही ना बन तू हर एक जैसा कि
फिर कभी ना तलाशा जाए
हो सके तो बन खुद जैसा की
दुनिया तुझी सा होना चाहे!
आओ चलो रोके वक्त को
ये कहीं यूं ही ना बीता जाए
खुद ही में गुज़ार कुछ पल
फिर सोच क्या खूब जिया जाए!!