औरों की ज़िंदगी जीते जीते क्या खुद की कमी महसूस कर पाए औरों की ज़िंदगी जीते जीते क्या खुद की कमी महसूस कर पाए
ज़रूरतों ने इतने हिस्सों में बाँटा मुझे कि जब मुकम्मल हुईं सब तब मैं कहीं ना था ज़रूरतों ने इतने हिस्सों में बाँटा मुझे कि जब मुकम्मल हुईं सब तब मैं कहीं ना था