मुसाफिर
मुसाफिर
तू मंज़िल की परवाह न कर
बस रास्तो का मुसाफिर बनता चल !
न हो जा तू किसी का, न किसी को अपना कर
सफर ये ख़ूबसूरत हो जायेगा, तू बस इसी में ढलता चल !!
तू मंज़िल की परवाह न कर
बस रास्तो का मुसाफिर बनता चल !
न हो जा तू किसी का, न किसी को अपना कर
सफर ये ख़ूबसूरत हो जायेगा, तू बस इसी में ढलता चल !!